भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अपनी दिसंबर बैठक से बिल्कुल जुदा हालातों में आगामी शुक्रवार को साल 2025 की अपनी पहली नीतिगत समीक्षा को अंजाम देगी। एक तो, प्रमुख अधिकारी बदल गये हैं। आरबीआई को नया गवर्नर मिल गया है। एमपीसी की पिछली समीक्षा के तुरंत बाद पूर्व राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा ने शक्तिकांत दास की जगह ले ली। डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा, जोकि एमपीसी के एक सदस्य व मौद्रिक नीति के प्रभारी थे, भी पिछले महीने सेवानिवृत्त हुए। चूंकि केंद्र ने अभी तक उनके उत्तराधिकारी का एलान नहीं किया है, लिहाजा केंद्रीय बैंक के नए मुखिया के लिए इस समीक्षा पर काम करना थोड़ा मुश्किल होने वाला है, क्योंकि एक अन्य डिप्टी के पास मौद्रिक नीति का अतिरिक्त प्रभार है। दूसरा, रुपया लगातार गिर रहा है। बीते 19 दिसंबर, 2024 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 तक पहुंचने के बाद, यह 13 जनवरी, 2025 को लुढ़क कर 86 तक पहुंच गया और आंशिक रूप से तीसरे कारक के चलते 3 फरवरी को 87 के आंकड़े को पार कर गया। डॉलर की यह मजबूती ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ के इरादे से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रमुख व्यापार भागीदारों पर उच्च शुल्क लगाए जाने और वैश्विक कर समझौतों से बाहर निकलने, सहायता प्रवाह को बंद करने आदि जैसी उनकी अन्य विघटनकारी आर्थिक योजनाओं से प्रेरित है।
एक चीज नहीं बदली है – उद्योग जगत और सरकारी अधिकारियों की ओर से ब्याज दर में कटौती की मांग। दिसंबर में, यह शोर जुलाई-सितंबर वाली तिमाही में विकास दर में तेज गिरावट के बाद तब काफी बढ़ गया जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर मात्र 5.4 फीसदी रही। अब जबकि 2024-25 में जीडीपी की वृद्धि घटकर महज 6.4 फीसदी रह गई है और दिसंबर के अंत वाली तिमाही में आर्थिक पैमाने में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, विकास संबंधी चिंताएं बरकरार हैं। इस बीच, आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के जिम्मेदार कारकों को लेकर नॉर्थ ब्लॉक और मिंट स्ट्रीट के बीच कुछ नुक्ताचीनी हुई है। वित्त मंत्रालय ने शहरी मांग में गिरावट के लिए कुछ हद तक सख्त मौद्रिक नीति को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की। केंद्रीय बैंक के जनवरी के बुलेटिन में आरबीआई के अधिकारियों ने कहा कि विकास में तेजी लाने और नए निजी निवेश के अच्छे चक्र को शुरू करने का “एक तरीका” लोगों के हाथों में अधिक खर्च योग्य आय देकर उपभोग को बढ़ावा देना है। खासकर उस शहरी मध्यम वर्ग के हाथों में, जो खाद्य मुद्रास्फीति से राहत की उम्मीद कर रहा है। बजट में आयकर में की गई कटौती के साथ इस मोर्चे पर गेंद वापस आरबीआई के पाले में है। पिछले पांच महीनों के दौरान मुद्रास्फीति पांच फीसदी से ज्यादा रही है, लेकिन यह जनवरी में घटकर आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य के करीब हो सकती है। लेकिन दर में कटौती से रुपये को और नुकसान हो सकता है तथा आयातित मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। आरबीआई के नए मुखिया के लिए यह एक अजीबोगरीब स्थिति है; वह श्री दास से प्रेरणा ले सकते हैं, जिन्होंने 2019 में अपने पूर्ववर्ती के रुख को उलटते हुए अपनी पहली समीक्षा में दर में कटौती करके बाजारों को हैरत में डाल दिया था।
Published – February 06, 2025 10:03 am IST