आम बजट 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी अहम चुनौतियों को दूर करने की कोशिश की गई है। जैसे, घटती घरेलू मांग, सुस्त निजी निवेश और धीमी वेतन वृद्धि, जिनकी वजह से समग्र जीडीपी वृद्धि दर में सुस्ती भरा असर पड़ रहा है। बजट की प्राथमिकताओं और आवंटनों पर बारीकी से नजर डालें, तो यह साफ होता है कि सरकार ने काफी सतर्क रुख अपनाया है, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि इन उपायों से वास्तव में मौजूदा समस्याओं का समाधान हो पाएगा या नहीं। सरकार ने खपत बढ़ाने और विकास को गति देने के लिए एक दोधारी तलवार का सहारा लिया है- भारी मात्रा में कर में छूट। इससे पूंजीगत व्यय पर सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की गुंजाइश सीमित हो गई है, जबकि यह भी आर्थिक विकास को हासिल करने का एक कारगर तरीका हो सकता था। लगातार बढ़ रही महंगाई के दौर में मध्यवर्ग के हाथों में ज्यादा पैसा देना सही कदम लगता है, लेकिन सरकार का मुख्य ध्यान अब भी राजकोषीय संतुलन पर टिका है। वित्त वर्ष 2026 में राजकोषीय घाटे को 4.4 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है, जोकि वित्त वर्ष 2025 में 4.8 फीसदी था। सरकार ने वेतनभोगी करदाताओं के बड़े तबके को कर में छूट की सुविधा देने के बावजूद, आयकर संग्रह में वृद्धि का अनुमान लगाया है। उम्मीद की जा रही है कि टेक्नोलॉजी के व्यापक इस्तेमाल से कर का अनुपालन बेहतर होगा, जैसा कि वित्त वर्ष 2025 में देखा गया। इस दौरान आयकर संग्रह 11,87,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़कर 12,57,000 करोड़ रूपये तक पहुंच गया। इस बजट की सबसे अहम घोषणा यह है कि 12 लाख रुपये तक की सालाना आय [पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) जैसी विशेष दर की आय को छोड़कर] वाले करदाताओं को कोई कर नहीं देना होगा, क्योंकि इस सीमा तक छूट की व्यवस्था की गई है। इसका उद्देश्य वेतनभोगी मध्यवर्ग और निम्न-मध्यवर्ग के बीच खपत को बढ़ावा देना है, ताकि वे कर में होने वाली बचत के जरिए ज्यादा खर्च कर सकें। आर्थिक सर्वेक्षण में यह बताया गया था कि इस साल ग्रामीण क्षेत्रों में खपत में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जबकि शहरी इलाकों में मांग में मिला-जुला रुझान देखने को मिला है। यह कदम इसी समस्या का समाधान करने के लिए उठाया गया है। इसके अलावा, आयकर देने वाले मध्यवर्ग के बीच कर में राहत की मांग लगातार उठ रही थी, क्योंकि बढ़ती महंगाई और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बढ़ते बोझ की वजह से उनकी आय काफी सिमट जा रही थी। बजट में कर प्रोत्साहनों के जरिए इस मुद्दे को काफी हद तक संबोधित किया गया है। एक तरह से, यह सरकार के अपने समर्थकों में बढ़ती असंतोष की प्रतिक्रिया भी मानी जा सकती है और इसे राजनीतिक समर्थन बनाए रखने की रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है।
हालांकि वेतनभोगी मध्यम वर्ग को निश्चित रूप से इसका फायदा मिलेगा और वे इस कदम का स्वागत करेंगे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह उपाय अकेले मांग को इतना बढ़ा सकेगा कि एक मजबूत और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि चक्र बनकर तैयार हो सके। ऐसा कहने की मुख्य वजह यह है कि अर्थव्यवस्था में निजी निवेश स्थिर बना हुआ है और कॉरपोरेट क्षेत्र इसे बढ़ाने की दिशा में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा। बजट में कॉरपोरेट क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति जारी है- कुल कर संग्रह में कॉरपोरेट टैक्स का हिस्सा वित्त वर्ष 25 में 25.4 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 26 में 25.3 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि, कम कॉरपोरेट कर दर और ज्यादा फायदे के बावजूद कंपनियों ने निवेश बढ़ाने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है, इसलिए सरकार को शायद वैकल्पिक रणनीति अपनानी चाहिए थी, जैसे कि कर प्रोत्साहनों को धीरे-धीरे समाप्त करना।
बजट में पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) के लिए ज्यादा आवंटन की प्रवृत्ति जारी है, हालांकि कोविड-19 महामारी के बाद के बजट की तुलना में इसका हिस्सा थोड़ा कम हुआ है। सड़क परिवहन (मंत्रालय) और दूरसंचार में आवंटन वित्त वर्ष 2025 के संशोधित अनुमान में क्रमशः 5.95 फीसदी और 2.64 फीसदी था, जो वित्त वर्ष 2026 के बजट अनुमान में घटकर 5.67 फीसदी और 1.6 फीसदी रह गया है। रेलवे को बजटीय सहायता भी वित्त वर्ष 25 के संशोधित अनुमान की तुलना में स्थिर बनी हुई है, जो दिलचस्प है, क्योंकि हाल के वर्षों में रेलवे को कई दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा है और इसे मजबूत बुनियादी ढांचे की जरूरत है। हालांकि, सरकार ने एमएसएमई को बढ़ी हुई क्रेडिट सहायता (गारंटी कवर 5 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़) और स्टार्टअप (10 करोड़ से बढ़ाकर 20 करोड़) को समर्थन देने पर जोर दिया है। इसके अलावा, जूता एवं चमड़ा उद्योग, खिलौना क्षेत्र और खाद्य प्रसंस्करण एमएसएमई के लिए भी योजनाएं लाई गई हैं। स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के विस्तार पर सरकार का ध्यान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जो इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी तकनीक क्षेत्र को पूंजीगत वस्तुओं पर शुल्क छूट सहित विभिन्न प्रोत्साहनों के रूप में दिया गया है। आवंटन की बात करें, तो ऊर्जा क्षेत्र में वित्त वर्ष 25 में 1.36 फीसदी के मुकाबले वित्त वर्ष 26 में 1.6 फीसदी आवंटन किया गया है, इस तरह इस क्षेत्र में व्यय में 0.24 अंकों की वृद्धि का बजट प्रस्ताव किया गया है। यह निश्चित रूप से स्वागत योग्य है, क्योंकि देश जलवायु के अनुकूल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है और इस क्षेत्र का रणनीतिक महत्व है। ग्रामीण विकास के लिए आवंटन वित्त वर्ष 2025 (संशोधित अनुमान) में 4.08 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 26 (बजट अनुमान) में 5.24 फीसदी हो गया है, लेकिन मनरेगा जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए आवंटन घटा है। वित्त वर्ष 2025 (संशोधित) के आंकड़े 1.82 फीसदी से घटकर यह वित्त वर्ष 2026 (बजट) में 1.7 फीसदी रह गया है। हालांकि, पीएम आवास योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी अन्य योजनाओं में आवंटन बढ़ाया गया है। मनरेगा एक प्रभावी योजना साबित हुई है, जो ग्रामीण आय बढ़ाने में सहायक है और गरीब ग्रामीणों की उपभोग क्षमता को बढ़ाती है। ऐसे में, इसे सीमित करना मांग को प्रोत्साहित करने के लक्ष्य के विपरीत होगा। रोजगार अब भी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में बजट में फ्रीलांस काम करने वालों के लिए सामाजिक सुरक्षा पर जोर देना स्वागत योग्य कदम है। उनके लिए पहचान पत्र जारी करने और ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कराने की योजना के साथ-साथ पीएम जन आरोग्य योजना के तहत उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा भी मिलेंगी। बजट भाषण में कौशल विकास पहलों पर जोर दिया गया है, ताकि ऑटोमेशन की बढ़ती भूमिका के दौर में युवा उद्योग जगत में रोजगार प्राप्त कर सकें। हालांकि, पिछले साल शुरू की गई महत्त्वाकांक्षी रोज़गार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना का बजट में उल्लेख नहीं किया गया, जोकि दिलचस्प है।
हालांकि बजट में अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के उपाय शामिल हैं, लेकिन इसमें अनिश्चितताओं के ऊपर उम्मीदें ज्यादा टिकी हुई हैं और व्यावहारिकता पर बहुत कम जोर दिया गया है।
Published – February 02, 2025 11:26 am IST