सत्ता और प्रतिष्ठाः 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव

दिल्ली अपनी विधायिका और सरकार के लिए सीमित शक्तियों के साथ एक केंद्रशासित क्षेत्र से ज्यादा कुछ नहीं है। उपराज्यपाल और प्रांतीय सरकार के बीच शक्तियों का बंटवारा एक सदाबहार बहस का मुद्दा रहा है और इसके नतीजतन प्रांतीय सरकार की भूमिका कम हो चुकी है। फिर भी, दिल्ली विधानसभा चुनाव किसी अन्य राज्य के चुनाव से कम प्रतिष्ठा का नहीं है। राजधानी शहर और एक विशाल आबादी (जिसमें काफी बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र रोजगार, वाणिज्य और आजीविका के लिए एक चुंबक बना हुआ है) को अपने भीतर समेटे हुए, दिल्ली विविधताओं का समागम है। दिल्ली के चुनावों में वर्ग और कल्याण के मुद्दे उत्तरोत्तर प्रमुख बनते गये हैं, जबकि पहचान के मुद्दे राजनीतिक किस्मत के उतने निर्धारक नहीं रह गये हैं। दिल्ली का नाटकीय ढंग से शहरीकरण हुआ है, जहां पॉश कॉलोनियों में भारत के कुछ सबसे हैसियतदार परिवार उन झुग्गी बस्तियों से बिल्कुल सटकर रहते हैं जो कामकाजी वर्ग और शहरी गरीबों को आश्रय देती हैं। एक बड़ा मध्य वर्ग है जो अब राजधानी शहर के विशाल सरकारी तंत्र में नौकरी करने तक सीमित नहीं है। यह महानगर छोटे व्यवसायों, कारखानों और सेवाओं का भी घर है जिनमें उत्तर भारत के मुफस्सिल इलाकों से आने वाले बहुत से प्रवासी काम करते हैं। इन तबकों में से प्रत्येक में नागरिक मुद्दों की भरमार है, जो दिल्ली चुनाव को अनोखा बनाता है। तीन मुख्य राजनीतिक दलों आप, भाजपा और कांग्रेस को अपने चुनाव अभियानों में इन मुद्दों को संबोधित करना होगा, और वे सिर्फ पहचान और सरपरस्ती की राजनीति पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते।

आज दिल्ली में मतदान के साथ, यह पता चल जायेगा कि क्या हालिया चुनावी चक्रों में मतदान का पैटर्न – केंद्र में भाजपा के लिए और विधानसभा में आप के पक्ष में – बना रहता है या नहीं। अपने कल्याणवादी कदमों के जरिए और साफ-सुथरे शासन के लिए जेहाद छेड़नेवाले की अपनी छवि को मजबूत करके, आप ने मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के गठबंधन का समर्थन सफलतापूर्वक हासिल किया है। इसकी मदद से उसने बीते दो चुनावों में अपना दबदबा बनाये रखा। हालांकि इस बार, उसके मुख्य नेताओं अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की शराब

नीति मामले में अपनी भूमिकाओं के लिए गिरफ्तारी के बाद, पार्टी के भ्रष्टाचार-विरोधी मुद्दे और छवि को धक्का पहुंचा है। “एवजी” मुख्यमंत्री आतिशी ने पार्टी की छवि को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश की है, साथ ही अपने मुख्य जनाधार को लक्ष्य करके तोहफों की बारिश के साथ अपने कल्याणवादी संदेश पर दोगुनी ताकत झोंकी है। जवाब में भाजपा को अपने कल्याणवादी कदमों पर जोर देने पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा है, जबकि कांग्रेस ने अपना खोया आधार दोबारा पाने की काफी कोशिश की है। इसके बावजूद, चुनाव अभियान निंदा और कीचड़ उछालने से भरे रहे हैं और मुख्य मुद्दों, खासकर वायु प्रदूषण, से कैसे निपटना है, इस पर कोई स्पष्ट मत नहीं है। उठा-पटक शांत होने के साथ, मतदाताओं को ऐसे उम्मीदवारों को चुनना होगा जो संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठने और इस शहर (जो आज शायद भारत का सर्वाधिक आबादी वाला शहर है) के निवासियों की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हों।

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